बरसों पहले ख़त लिखा था
बरसों पहले ख़त लिखा था
यादों की अलमारी से आज
बंद लिफ़ाफ़े में एक ख़त पाया।
बरसों पहले तुम्हें लिखा था,
लेकिन तुमको भेज न पाया।
बड़ी मुश्किल से जज़्बातों को
कुछ शब्दों में ढाला था।
दिल के हर अरमान को बस
काग़ज़ ने ही संभाला था।
तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी हर अदा
मुझको बहुत लुभाती थी।
ऐसा लगता था मुझको तुम
मेरे लिए ही आती थीं।
वो तिश्नगी थी या दिल्लगी तेरी
मैं आज तक न समझ पाया।
बरसों पहले ख़त लिखा था,
लेकिन तुमको भेज न पाया।