बरसात
बरसात


प्रेम में कहीं बरसता कहीं बरसती है
आग गीतों का कहीं जलवा कहीं बरसती राग
कभी सावन रिमझिम सा उमड़ घुमड जाता
काले मेघ लाकर वह मुसलाधार
बरस जाता बरसती है नेह मां के आंचल से
कभी बरसती भावों का सागर भी मन से
बादल गड़गड़ करते बिजली कड़कती नभ में
धड़कता है दिल बरसता सजनी का प्यार दिल में
कृषक खुश होत
े देखकर ये बरसात का आलम
बरसती खुशियां ही खुशियां भूल जाता वह सारे गम
मन में उठती हजारों संवेदनाएं जी भर कर
बहती रहती कविताएं शब्द मोती सा बनकर
सजना के वियोग में सजनी के बहते रहते नैना
कोई ना जाने छुप जाते हैं बरसात में ये आंसू
हे ईश्वर खुशियों की तुम बरसात कर देना
आनंद की हो पराकाष्ठा इतनी
बरसात खुशियों की कर देना।