बरसात में हाहाकार।
बरसात में हाहाकार।
बरसात में चहूं और हाहाकार मचा है
बरसात में चहूं और हाहाकार मचा है।
अतिवृष्टि के कारण देखो आधा शहर डूबा है।
पानी की किल्लत और बढ़ गई जब से शहर में पानी भरा है।
पीने के भी पानी का मानो अकाल पड़ा है।
फल सब्जी सब महंगे हो गए कुपित इंद्रदेव जी हो गए।
कहीं इस अतिवृष्टि का कारण ही तो नहीं इंसान बना है?
कंक्रीट के जंगल उगाकर,
ऊंची ऊंची मंजिलें बसाकर।
बड़े-बड़े पेड़ों को देखो मानव काट रहा है।
नदियों के किनारों को,
फैक्ट्री के मलबे से मानव पाट रहा है।
पॉलिथीन का करके उपयोग,
कर दिए हैं सारे सीवर चोक,
अब इस पानी से निकाल कर कैसे पहुंचेंगे दफ्तर खड़ा-खड़ा यही तो मानव सोच रहा है?
बरसात में चहूं और हाहाकार मचा है
