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Sachhidanand Maurya

Romance Others

4  

Sachhidanand Maurya

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बरसात का पानी

बरसात का पानी

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याद आता है बड़ा, बैठकर चाय की, बात का पानी,

तैरते थे बालपन के, कागज के नाव, बरसात का पानी,

मिलता था सुकून, प्यासे दिल को, रिमझिम फुहार से,

भीग रही थी धरती, पीकर नीरद के, जज्बात का पानी।


बिजलियों की चमक फीकी थी, तेरे यौवन के चमक से,

हरियाली तरुणा की खुशबू बहका रही थी महक से,

मिल गया नदियों को धार, बह रही थी पुरवा बयार,

नाच उठा था, मन मयूरा मस्ती में, पानी के मोदक से।


जब छत से टपक गया था, हथिया के बरसात का पानी,

खेतों को देख, माथा ठनक गया था, उस रात का पानी,

जब घर की दहलीजों तक तैर रही थी लहरें मानो,

फन पर विष्णु नाच उठे, गए कांप देख हालात का पानी।


भोले बाबा का यह मौसम उनके प्रसाद का पानी,

बदल गए बादल अब बदल गया है आज का पानी,

दो चीजें कभी ना बदले इस दुनिया में यारों देखो,

एक धरती की प्यास और एक इस आकाश का पानी।



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