बरगद की छाया
बरगद की छाया
वटवृक्ष नीचे कौन कामिनी,
बैठी मुख छुपा यूं मौन।
परित्यक्ता सीता सी या,
मीरा प्रेम दीवानी हो।
ना मीरा हूँ ना परित्यक्ता मैं,
ना सीता न ही पतिता हूँ।
मैं हूँ वटवृक्ष की छाया ,
ना कुरूक्षेत्र की गीता हूँ।
इनसे हुआ उद्भव मेरा,
यही बने हैं मेरी शान।
इनके कारण हिलती डुलती,
इनसे ही मेरी पहचान।
वटवृक्ष की छाया हूँ मैं,
इन्होंने मुझको अपनाया।
मैं मन कोई अभागिन नहीं,
मेरे सिर पे है स्वामी का साया।
मैं हूँ वटवृक्ष की छाया,
मैं हूँ वटवृक्ष की छाया।