बरगद की छाँव
बरगद की छाँव
लोग हैं कितने अनजान शहर में,
ज़मी है नहीं, है आसमान शहर में।
उम्मीद थी ज़िंदगी हँसी होगी,
बिखर गए मेरे अरमान शहर में।
शिकायत मैं रब से क्या करता,
हर कोई दिखा परेशान शहर में।
रात में कोई बाहर नहीं निकलता,
लूट गया जो मिला वीरान शहर में।
गाँव के बरगद की छाँव अच्छी है,
क्या करोगे लेकर मकान शहर में।