अनजान सफ़र और खूबसूरत सी लड़की
अनजान सफ़र और खूबसूरत सी लड़की
बनारस से दिल्ली तक का वो सफ़र था
ना तो कोई यार ना ही कोई हमसफर था
फ़िर सामने वाली सीट पे आकर बैठी वो,
मुझे नहीं मालूम था उसे जाना किधर था।
दुपट्टे में क़ैद था चेहरा निगाहें झुकी थी
वो आँखें पल में बहुत कुछ कह चुकी थी
फ़िर चेहरे से उसने अपना दुपट्टा हटाया
एक प्यारा सा चेहरा मेरे सामने था आया।
आप बनारस से हो कर बातों को आगे बढ़ाया
मैं वहीं पढ़ती हूँ, नया दाखिला है कहा उसने,
बातों ही बातों में अपना नाम अजनबी बताया
उस रात के सफ़र में एक हमसफर भी पाया।
नहीं पता था कि वो इतनी खास हो जाएगी
उससे ये दिल पहली बार में ही जोड़ आया
फ़िर उस हसीन से सफ़र में गज़ब मोड़ आया,
ना चाह के भी उसे स्टेशन के बाहर छोड़ आया।