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Nirupa Kumari

Romance

4  

Nirupa Kumari

Romance

बोलती आँखें

बोलती आँखें

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कैसे करूं तशहीर मैं अपनी वफ़ा का

कैसे समझाऊं उस लम्हें को जिसमें इश्क़ ने मुझको छुआ था

पढ़ सको तो आके पढ़ लो आंखें मेरी

दिखेगा इनमें अक्स तुम्हारा ही,और तुमसे कहूं क्या


लब्ज़ हैं ख़ामोश मेरे, 

जो देखो तो हैं बोलती आँखें

इश्क़ है इतना गहरा,बयां कर सकें जो अल्फ़ाज़ उसे

इतना उनमें दम कहाँ

झुकें या निहारें, निग़ाहों की हर अदा में छिपे हैं कई अफ़साने


एहसासों का सागर है इनमें, जो चाहे गोते लगा ले

इनमें इज़हार है इकरार है, जन्मों का इंतज़ार है

दर्द है,आँसूं हैं, खुशी है और बेइंतेहा प्यार है

ठहराव है, बिखराव है


धूप है, छाँव है, और एक सुंदर सपनों का गाँव है

सुन सको तो सुनो इन नज़रों का शोर

आंखों में बसे हो तुम

बंद हों या खुली,दिखते हो तुम ही तुम हर ओर


आज चाहतीं हैं ये निगाहें होना बेपरदा

चाहतीं हैं हर झिझक को छोड़कर तुमसे सब कहना

सुनो मेरी निगाहों से तुम भी अपने दिल की कहना

तोड़कर इस ज़माने का पहरा


तुम इस सैलाब में कुछ देर तो ठहरना

इरादे जता देना,वादे बता देना

निगाहों के सवाल का जवाब निगाहों से सुना देना

कल का यकीन नहीं मुझे

मुझको है उस एक पल में सदियाँ गुजार लेना।


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