बलात्कार
बलात्कार
बलात्कार की आवाजें सुन थक चुका हूँ।
क्यों लड़कियों के जिस्म के भूखे हो?
क्यों मचल जाती हैं,
आँखें तुम्हारी सम्भोग के नाम पर ?
क्यों हैवान बन जाते हो,
लड़कियों को देखते ही?
क्या छः माह की लड़की को भी साड़ी पहनानी होगी?
जब बलात्कारी बेखौफ घूम रहे हैं।
तो क्यों बनाए सरकारी थानों के चोचले।
यह कलयुग है लड़कियों।
अब तुम्हें लड़कियों खुद ही कान्हा बनना पड़ेगा,
अब ना आयेंगे कान्हा ।
जिस कन्या ने अभी चलना सीखा नहीं,
दरिंदे उसकी भी बोटी-बोटी नोच रहे ।
क्या यही विश्व गुरु भारत है।
इन हादसों के बाद भी सरकारी दफ्तर निद्राओं में है।
राजा बने बैठे हैवान।
हर नेता खुद की कुर्सी बचाना चाहते हैं।
छन्द पलों में पीड़ितों की आवाजें गुम हो जाती हैं।
अब तो करो राम को याद,
करना लेना हाथ उसके हाथ।
अखबार हर रोज सने रहते लहू से,
एक हादसा भूलें नहीं,
उतने में ही दूसरा सुनने मे आ जाता है।
छोडा एक दरिंदे को,
सौ दरिंदो को उत्साह मिला।
दरिंदे उगते सूरज को तो,
करते देवियों की आराधना।
और...
डूबते सूरज के साथ बन जाते हैं।
नारी मागे न्याय।
और...
न्याय कहे पहले खुद संभलो।।