बिन तुम्हारे दीन थे।
बिन तुम्हारे दीन थे।
चाहतें थीं दिल में जो भी, जता न पाए हम कभी,
मन तुम्हारा हो गया पर, बता न पाए हम कभी।
इश्क़ का इज़हार कर लूं, तुमसे, दिल करता रहा,
पर इशारों को तुम्हारे, पता न पाए हम कभी।।१।।
रात दिन आराधना में, हम तुम्हारे लीन थे,
रात थी वो शुक्ल-पक्षी, ख्वाब में तल्लीन थे।
हो नही पाई मुखर, जो, चाहते दिल में रहीं,
पास था सब कुछ हमारे, बिन तुम्हारे दीन थे।।२।।

