बिन तेरे मेरी होली
बिन तेरे मेरी होली
बिन तेरे होली मेरी, फीकी फीकी रहती है।
खुशबू मेरी सांसों में तेरी, महकी महकी रहती है।।
लौट के आ जाओ घर को, देखो अबकी होली में।
गलियाँ मेरे घर की तुम बिन, सूनी सूनी रहती है।।
किस तरह से रोकूँ इसको, जो बहता है आँखो से।
जल से भरी सारी नदियाँ, हर पल बहती रहती है।।
रूठ के मुझसे दूर गए, यूँ सजा मुझे तुमने दे दी।
छोड़ के मुझको न जाने तू, दूर कैसे रहती है।।
मैं समझूँगा माफ किया, होली में गर आते हो।
बिन तेरे मेरी होली, होली जैसी नही रहती है।।
नहीं हूँ भूला पलभर तुझको, करता हूँ मैं याद तुझे।
दूर तेरे जाने से नींदें, मेरी रूठी रूठी रहती है।।
बात 'प्रथम' के दिल की, उसकी ग़ज़लें कहती हैं।
शब्दों के रंगों से भरी, तस्वीर दिल में रहती है।।