हे राम। करूं क्या अर्पण
हे राम। करूं क्या अर्पण
हे राम। करूं क्या अर्पण
सब कुछ तेरी ही देन है।
एक ईंट लगाऊं तेरे नाम की
मंदिर को तकते नैन है।।
तेरी मर्यादा उस युग ने देखी
हमने भी देखी है पुरुषोत्तम।
जैसे रहे वर्षों कुटिया में
सदियां गुजारी तंबू में तुम।।
वैसे ही शांत चित्त मधुर मुख
देख रहे थे दुनिया की रीति।
क्या बाट जोह रहे थे हनुमत का
जो मिटाएगा जग की कुरीति।।
उसमें भर के शक्ति दलबल
राह सुगम की जो थी दुर्गम कल।
चुना रास्ता देव वाणी का।
न्यायपालिका सर्वोच्च अविचल।।
सबको सन्मति देने वाले
तेरी माया निराली है।
देख सकूँगा तेरे भवन को
मेरा जीवन भाग्यशाली है।।
कृपा रहेगी राम की
जो राम के काम आया है।
काज सफल होंगे उसके
हर उर में राम समाया है।।
घूम रहे जन बनके वानर दल
रामनिधि जुटाने को।
रास्ता देख रहा है हर घर
तन मन धन तुझमें लुटाने को।।
राम नाम की महिमा न्यारी
जो जल में पत्थर तेरा दे।
अब राम नाम की ईंट लगेगी
जो नभ में पताका पहरा दे।।
केसरिया साफा बांध के
मैं तेरे द्वारे आऊंगा।
मंदिर में तेरे निकट बैठ कर
रघुपति राघव गाऊंगा।।
