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नए रंग में

नए रंग में

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उस अब्र के भी जाने कितने रंग हो गए

साए में इनके लोग भी बदरंग हो गए    

नए रंग में दिखते हैं ये हर मौसम में

लोगों के भी जीने के कितने ढंग हो गए।


मजबूरी है रंग बदलना आज की

मजबूरी है ढंग बदलना आज की

जो सच्चे थे वो भी झूठों के संग हो गए

उस अब्र के भी जाने कितने रंग हो गए।


ये सोच जो उपजी है मानव के मन में

अच्छा था मानव आज से पहले वन में

आज के मानव पसंद ए जंग हो गए

उस अब्र के भी जाने कितने रंग हो गए।


कैसे करें उस अब्र से बदली हटाएँ

कैसे करें मानव को सच्ची राह दिखाएँ

मानव खुद मानव से जितने तंग हो गए

उस अब्र के भी जाने कितने रंग हो गए।


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