मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी
मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी
रण में बढ़ते जाऊंगी अंग्रेजों को घुसने नही दूँगी।
शीश भले कट जाए पर मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।।
रानी की कहानी अब भी गूंजती है झांसी में।
बुरी नज़र रखने वालों को लटका देती थी फांसी में।।
मराठा रानी हूँ मै तोपों के आगे भी नहीं झुकूंगी।
शीश भले कट जाए पर मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।।
बचपन में ही खेल खेल में उसने सीखी थी तलवारी।
बरछी ढाल कृपाण कटारी से थी उसकी पक्की यारी।।
बुंदेले हरबोलों के मुंह उसकी गाथा सुन लो तुम भी।
शीश भले कट जाए पर मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।।
अवसान हुआ राजा का तब डलहौजी ने की तैयारी।।
राज्य हड़प करने को उसने भेजी अपनी सेना सारी।।
सेना के आगे हुई खड़ी और कहा अब न रुकूँगी।
शीश भले कट जाए पर मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।।
दामोदर को बांध लिया छाती से शत्रु को ललकारा।
गर हाथ लगाया झांसी को तो जाएगा बेमौत मारा।।
धरा रक्तरंजित करने वालों से चुन चुन के बदला लुंगी।
शीश भले कट जाए पर मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।।
रानी समर में कूद पड़ी तो सखियों से मिला सम्बल।
काना और मन्दरा रहती थी रानी के संग में हरपल।।
काल बनकर टूट पड़ी वो जयघोष से धरती गुंजी।
शीश भले कट जाए पर मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।।
डलहौजी को मार भगाया वाकर स्मिथ भी हारा।
ह्यू रोज जब सामने आया घोड़ा नया था बेचारा।।
कूद नही पाया वो नाला रानी बन गयी उसकी बंदी।
शीश भले कट जाए पर मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।।
बलिदान देकर भी उसने दिव्य अमरता को पायी।
लड़ते लड़ते स्वर्ग सिधारी ऐसी थी रानी लक्ष्मीबाई।
निभा गई वो अपना वचन कि आँच नही आने दूँगी।
शीश भले कट जाए पर मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।।