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Poonam Godara

Tragedy

4.5  

Poonam Godara

Tragedy

बिलखती हुई रात

बिलखती हुई रात

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440


वो सबसे छुप-छुप के मिलना

कुछ कदम यूँ ही साथ चलना

कभी लड़ना,कभी झगड़ना

कभी रूठना,कभी मनाना

उस जन्नत सी जिंदगी का

आखिरी पड़ाव है

ये बिलखती हुई रात


मैं प्रेग्नेट हूँ

ये काँपती हुई आवाज,

तुम टेन्शन ना लो

हम कुछ सोचेंगे आज

इस झूठी तसल्ली का

आखिरी पड़ाव है

ये बिलखती हुई रात


अरे कम से कम मेरी इज्जत का तो ख्याल करती

नाम चाहे ना रोशन करती

पर यूँ बदनाम तो ना करती

इससे अच्छा तो तू मेरा गला घोंट देती

इस बदनामी की बुलन्दियों का

आखिरी पड़ाव है

ये बिलखती हुई रात


हाँ ये सर्दी की ठिठुरती हुई रात

आयी थी हर रोज की तरह

इस दौड़ती हुई दुनिया को

कुछ पल सुकून देने


पर बदकिस्मती तो देखो इस रात की

ये हिस्सेदार बन गयी उस मासूम के दर्द की

जिसे पनपने से पहले ही नोच दिया गया

6 माह का वो भ्रूण जिन्दा था

साँसें चल रही थी उसकी

नन्हा सा दिल

धड़क रहा था उसका


जैसे ही किलकारी गूँजी

हास्पिटल की वो बेजान दीवारें मानो रो पड़ी

उस माँ को होश आता उससे पहले ही

उठ चुका था जनाजा उस जिन्दा कब्र का


हर सख्स शामिल था उस जनाजे में

सिवाय इस ठन्डी अँधेरी रात के

जो बीतना चाहती थी,बिन बीते

पर अफसोस ये बड़ी होती जा रही थी


बीमार सी उस गरीब बस्ती को

उस मासूम की चीख ने

दिन निकलने से पहले ही जगा दिया

बस्ती के लोग इकट्ठा हुए

कुछ सवाल उठे,कुछ अंदाजे लगे

पता चला लड़का है

तो एक हल्की सी फुसफुसाहट हुई

अरे नाजायज़ होगा


तभी उस नन्हें से बदन में हरकत हुई

जैसे ही कचरे से बाहर निकाला

तो मालुम हुआ

थम गयी थी उसकी नन्ही साँसें

मार दिया इस दुनिया ने उसे


क्युंकि वो नाजायज था...............














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