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मिली साहा

Abstract Tragedy

4.7  

मिली साहा

Abstract Tragedy

बिखरता आशियाँ

बिखरता आशियाँ

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ए -ज़िदगी यह कैसा आया तूफ़ान है,

तिनका -तिनका बह गया अरमान है,

ख़्वाब सजाए हमने जो भी आंँखों में,

उसका बिखरता जा रहा आसमान है,


क्यों ऐसी बेरुखी, क्यों ऐसी हलचल,

ग़म में तब्दील हुआ खुशियों का कल,

बड़े अरमानों से सजाया जो आशियांँ,

बिखर कर रह गया ठहरा ना एक पल,


खेला ऐसा क्यों मेरा नसीब खेल गया,

मांगी थोड़ी सी खुशियाँ वो दर्द दे गया,

ज़िन्दगी ये बता आखिर क्या खता हुई,

किस गुनाह के लिए ऐसी सजा दे गया,


बिखरे ख़्वा

बों के समेट रहा हूंँ निशान,

पर यहाँ तो मिट गई है मेरी ही पहचान,

खुशियों का आशियांँ हुआ करता जहांँ,

आज दर्द से सिसक रहा हो गया वीरान,


कभी सोचा नहीं ऐसी आएगी कयामत,

वक्त़ के साथ दगा दे जाएगी ये किस्मत,

दर्द ऐसा घरौंदा अब बना चुका जहन में,

कि खुद से ही नहीं कर पा रहा हूँ मुरव्वत,


अपनी गलियों में हो चुका हूँ मैं गुमशुदा,

बचा ही क्या इस जीवन में दर्द के सिवा,

नहीं न तो रही और न ही बची है उम्मीद,

वक्त के पास भी नहीं है इस दर्द की दवा।


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