STORYMIRROR

संजय असवाल

Tragedy

4.7  

संजय असवाल

Tragedy

बिखरी आस

बिखरी आस

1 min
381


हर तरफ बिखरा दर्द है 

आंसुओं में डूबे समुंदर है,

चीख है चीत्कार है 

बस हार ही हार है,

उदासी निराशा 

भय का जंजाल है,

खौफ में झुके कांधे 

हर तरफ लाचार हैं,

भीख जिंदगी की हर कोई मांगता 

कोई अपनों के लिए यहां वहां भटकता 

कोई खुद के लिए 

देहरी पर तड़पता, 

है ये कैसी विपदा भारी 

सब कुछ छूटा 

फिर हाथ भी रह गया खाली,

मायूस चेहरे 

हर ओर बिलखते लोग,

परेशान सब यहां अपने पराए,

उम्मीदें टूटती गली गली में 

रूदन अब है यहां हर घर में, 

कभी पसरा घोर सन्नाटा 

कहीं कोलाहल यहां बहुत है,

रोना धोना चीख पुकार 

>लाशों के अंबार लगे हैं,

ना कद्र इंसानों की इंसानों ने की है 

यहां हर ओर मंडराते गिद्ध ही गिद्ध हैं,

भय दर्द निराशा

खौफ का ये मंजर है,

दो घूंट सांस जो मिल जाए 

यही अब सबका मुकद्दर है,

जिंदगी ये अब बेस्वाद सी हो गई 

उम्मीदें बांधे कोने में खड़ी है,

सिसकियों आंसुओं से 

अब भर गया कलेजा 

जिंदगी कफन ओढ़े जो खड़ी है,

है इंतजार, 

अब पुराने पलों का 

महकते चहकते फुदकते दिलों का,

दुश्वारियां हो कम 

अब हम सभी की, 

जीने की आरजू भी हो 

पूरी सभी की,

हाथ जोड़े खड़े

रहम कर अब रब तू 

रूठा है मगर 

महर कर अब तू......!!!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy