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Ratna Pandey

Tragedy

5.0  

Ratna Pandey

Tragedy

बिखर गई माला

बिखर गई माला

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एक एक मोती जोड़कर छोटी सी माला बनाई थी,

हर मोती को पिरोने में उसने पूरी जान लगाई थी,


बड़ा मजबूत था धागा, सोचा टूट कभी ना पाएगा,

और माला का हर एक मोती उसकी शान बढ़ाएगा,


देख माला की मज़बूती उसमें विश्वास जागा था,

मेहनत उसकी सफल हो गई, ऐसा उसने माना था,


किन्तु एक मोती का रंग धीरे धीरे बदल गया,

स्वार्थ के प्रदूषण से वह पूरा काला पड़ गया,


धागा तोड़कर वह बाहर निकलना चाह रहा था,

आस पास के मोतियों से बार बार टकरा रहा था,


चाह कर भी वह धागा फ़िर उसे रोक ना पाया,

तोड़ दी माला, जज़्बातों को वह समझ ना पाया,


टूट गई फ़िर माला उसकी सारे मोती बिखर गए,

इधर गिरा कोई उधर गिरा, जाने सब किधर गए,


बहुत समेटना चाहा लेकिन हाथों से वह फिसल गए,

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, चारों दिशाओं में फैल गए,


गूंथने वाला उनको आज भी चौराहे पर खड़ा हुआ है,

लेकर हाथों में डोरी, बरसों से राह वह निहार रहा है,


इंतज़ार की घड़ियाँ, मुश्किल ही नहीं बहुत लम्बी है,

लेकिन सांसों के चलते उम्मीदों का कोई अंत नहीं है।



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