बीती रात कमलदल फुले
बीती रात कमलदल फुले
कितनी नाजुक कितनी कमसीन
पंखुड़ियां तुम्हारी होती हैं
दल के भीतर भिनी खुशबू
कहाँ से तूझ में आती है....?
मैं भवरा मतवाला ऐसा
फूल फूल मंडराता हूँ
शामक को थककर फिर से वापस
तेरे ही दर पे आता हूँ.....!!
मैं भवरा लकड़ी को चिरू
इतनी ताकत रखता हूँ
इतनी कोमल होके तेरा
बंधन में तोड़ ना पाता हूँ....
बीती रात कमल दल फुले
में बंधन में बन गया
इतना उलझा तुम्हारे अंदर
के अपना अस्तित्वही भूल गया..
स्त्री तू रूप हे कितना सुंदर
मैं कठोर एक नर सही
एकेक पंखुड़ी त्याग हे तेरा
जुड़े हैं जिससे रिश्ते कई....
तेरा बंधन मन को भाये
मैं तेरे रंग में रंग गया
बीती रात कमलदल फुले
मैं कच्ची डोर में बंध गया