लोकव्यवहारऔर नेग रिवाज
लोकव्यवहारऔर नेग रिवाज
नाजो से पालकर,
हाथों से सवारकर
एक नन्ही परी को
खूब प्यार किया
हँसती, खिलखीलाती,
दौड़ती आँगन में
उसने भी मेरे जीवन
को व्याप्त दिया
दिन बिते, रातें बिती,
सालो गुजर गये
एक पड़ाव मेरे
अश्क के धागे उखड़ गये
मैं माली था उसका
पर वो फूल मेरा न था
जिंदगी भर ममता लुटाई उस पर
पर उस पर हक मेरा न था
हाँ बाप हूं, फर्ज तो निभाऊंगा
अपनी प्यारी तुलसी को
तेरी आंगन में बसाऊंगा
तुम सिर्फ इतना करना
कभी उसका अपमान न करना
वही तो असली लक्ष्मी है
लेके दहेज ये पाप न करना।
लोकव्यवहार की बातें ये
रिश्तों में क्यों आ जाती है ?
नेग रिवाज के नाम पे अब भी
क्यूँ बेटी मेरी जल जाती है ?
