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Ram Chandar Azad

Drama

4  

Ram Chandar Azad

Drama

पापा के पत्र

पापा के पत्र

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बहुत ही सहेजकर रखे थे उसने

पापा के पत्रों को

कभी-कभी पढ़ लेती थी

अवसर मिलने पर।

ना जाने क्यूँ

पढ़ते ही एक अक्स उभरकर

सामने आ जाता था।


वह उससे बतियाती थी।

कभी कभी तो वह इतना

भावुक हो जाती और

बोल पड़ती कि

आप हम सब को छोड़कर

क्यों चले गए।


वह कोई और नहीं

पाँचवीं क्लास में पढ़ती

पापा की मुँह बोली

मुनिया थी।


लगता था जैसे पापा उसके

बगल में बैठे हों।

उसके होमवर्क करा रहे हों

और कह रहे हों-


तुम्हें यों नही यों सवाल को

हल करना चाहिए था।

उसने पापा के पत्रों के जवाब

भी लिख रखे थे।


सोचा था कि

डाकिया के आने पर उसे

पोस्ट कर देगी लेकिन

अब कैसे करे

किसको करे ?


पापा तो हमेशा हमेशा के लिए

छोड़कर जा चुके थे वहाँ

जहां से कोई आज तक

लौटकर नहीं आ सका।

पापा और उसके लिखे पत्र

वैसे के वैसे आलमारी के बीच


रखे पड़े हैं जो

वक्त बेवक्त स्मृति बनकर

प्रकट हो जाते हैं

पापा के रूप में।


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