अब तक हैरान हूँ
अब तक हैरान हूँ
अब तक हैरान हूं मैं,
के तेरा होना एक सपना था
या हकीकत,
तेरे बिना ये जिंदगी अब
तो बिना मानसून की बंजर
जमीन सी लगती है,
यहाँ भीड़ बोहोत है फिर
भी तेरे बिना ये जहांन
सुना सुना सा लगता है,
इसलिए बोहोत बेचेंन हूँ
तेरी प्यारी हसी देख सकू ऐसा
सुकु भी नहीं है यहाँ,
मैं वो ही हूं जो तुझे
देखता था चुपके चुपके,
तू पड़ती थी दिन रात तुझसे
सीखता था बच्चा बनके,
सोचता हूँ बहाने से
छुपके इस जमाने से
तुझे ढूंढ लाऊ सपनो से कही,
ये प्यार भी बड़ी कमाल की
चीज होती है जिसको चाहो वो
ही दिल से बहुत दूर होती है,
इसलिए जिंदगी के सभी
सुखों से अनजान हूँ
और सोचता हूँ
के तू मेरा सपना था या हकीकत,
तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं,
शिकवा नहीं,
तेरे बिना जिंदगी भी जैसे जिंदगी तो नहीं,
जिंदगी नहीं, जिंदगी नहीं।

