आ बैल मुझे मार
आ बैल मुझे मार
वह सुबह से बैठा था तैयार।
घूमने जाएंगे आज दोनो यार।
क्योंकि स्कूल की छुट्टी थी,
और दिन था इतवार।
न चाहकर भी पापा से
खुश होकर पूछा-
क्या बाजार से कुछ लाना है समान ?
पापा ने कहा- हाँ,
मैं भी चलूंगा तुम्हारे साथ
नहा कर आता हूँ तब तक यहीं बैठो
और करो इंतजार।
मैं बोल उठा बुरा मत मानना यार।
उसने उदास मन से कहा-
ये तो वही बात हो गईं यार।
आ बैल मुझे मार।
दोनो ने पहले से ही
विचार किया था देखेंगे सर्कस।
मगर दोनो अब दिख रहे थे बेबस।
पापा को किराने की दुकान पर
छोड़कर खिसक लेंगे धीरे से
मगर वे पहले ही बोल उठे
बेटा, ये सामान पहुंचा दो घर
थोड़ा यही काम और कर दो बस
फिर चले जाना देखने सर्कस।
मित्र ने फिर उदास मन से कहा-
ये तो वही बात हो गई यार।
आ बैल मुझे मार।
रात में पड़ोसी अंकल के घर
चोर घुसे चुपके से
जब सब सो रहे थे बेखबर।
मारा पीटा सो अलग
रुपए ,जेवरात ले लिए सो अलग
मैंने अपनी खिड़की से देखा
चोर की लम्बी लम्बी दाढ़ी ,
ले गए अंकल की कमाई गाढ़ी।
पुलिस आ गई सुनकर शोर
भाग गए थे सारे चोर
मैं स्कूल जाने को था तैयार।
क्या किसी ने चोर को देखा है
मैं बोल उठा - हाँ, हाँ
मैंने है देखा।
फिर तो पहचान बताने के लिए
जल्दी से हो जाओ थाने
चलने को तैयार
मैं सोचने लगा ये क्या
ये तो फिर वही बात हो गई।
आ बैल मुझे मार।