एक पत्र
एक पत्र
एक खत लिखा जो तुझको
न जानू कहा वो भेजना है
दिल का दर्द आंखों से बहता
बस तुझ से सब कुछ कहना हैं।
मैं भी भूखा, माँ भी भूखी
हम सारे भूखे सोते है
रूखी सूखी मिले कभी तो
दिवाली समझकर खाते हैं।
अन्नदाता कहते मुझको
पर दाने दाने के लिए तरस्ता हूँ
माँ कहता धरती को अपनी
उस को बेच कैसे सकता हूं ?
हारा नहीं कमजोर नहीं मैं
बस तुझसे ये कहना है
भगवान मुझको बल दे इतना
हा मुझ को फिर से लडना है।
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा न जानू
मानवता का धर्म मै मानु
अन्नदाता सुखी भव कह
मैं अपने जीवन को सार्थक मानू
थोड़ी सी तू बारिश दे बस
धरती माँ जो भीग सकें
मेहनत कर लूंगा मैं जमकर
पर खेत मेरे उग सके।
