STORYMIRROR

Amit Kumar

Drama

4  

Amit Kumar

Drama

एक शाम

एक शाम

1 min
463

उस ढलती शाम में 

मैं, तुम और वो चांद

तीनों बस खामोश थे, 

वक्त हमारे हाथ में था

और हम वक्त में बेहोश थे। 


नजरें मेरी झुकी हुईं

और नजर तुम्हारी मेरी नज़रों पर थी, 

होंठ थे सिले हुए

आंखे काफी थी बयां करने को

बात जो दिल के लहरों पर थी। 


दो जिस्म एक जान की 

धड़कने गूँज रही साफ थी 

अगर इश्क़ है कोई खता 

तो उस वक्त में हर खता माफ थी। 


शाम कर गुलाबीपन

आंखों मे ढल रहा था

पिघल जाने को एक दूसरे मे 

एक मन मचल रहा था। 

गोद में तेरी सिर रख 

ना जाने कैसा सुकून था

तेरा होना हमेशा से जैसे

इस दिल का जुनून था। 


आज फिर एक शायर अपने

ख्वाबों में खोने चला है

गमों ने रुलाया बहुत 

खुशी के आंसू रोने चला है। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama