आ बैल मुझे मार
आ बैल मुझे मार
है क्यों अब कोई हताशा
ह्रदय में उमंग न कोई आशा
घूमते हो अब बन तमाशा
ले संग स्मैक चरस और गाँजा
किया स्वमेव ये अपना हाल
हुआ वही, आ बैल मुझे मार
देता नहीं कोई साथ जरा सा
न कोई सहानुभूति और दिलासा
टूटते रिश्ते बिखरती अभिलाषा
व्यंग्य कटाक्ष की चुभती भाषा
बुना खुद ही ने नशे का जाल
हुआ वही, आ बैल मुझे मार
बना शरीर कंकाल-सा ढांचा
हुआ रक्त अब विष के जैसा
किया रोगों ने कब्जा ऐसा
दहका बदन अंगार के जैसा
अब क्यों करे मृत्यु की फरियाद
हुआ वही, आ बैल मुझे मार।
