बैल को हमने
बैल को हमने
बैल को हमने
प्यार से कहा-
आ बैल मुझे मार
मगर वह
टस से मस न हुआ
हमने भी
हार नहीं मानी।
की हमने छेड़खानी
पर हाय रे उसका धैर्य
हमने चलाये
डंडे लातें घूंसे
वह बोला-
अरे इंसान
अपनी औकात में रह
मैं जानवर हूं
इंसान नहीं
जो भूल बैठा है
अपनी इंसानियत
मैं तुम्हारे हुक्म का
गुलाम भी नहीं हूं
फिर भी तू
पिटना चाहता है तो पिट
देखते ही देखते
उसकी आंखों से
अंगारे बरसने लगे
अब उसे
कहने की
जरूरत न रही कि
आ बैल मुझे मार।
