नदी की आत्मकथा
नदी की आत्मकथा
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सुनो नदी
क्या तुम नारी का
मुकाबला
कर पाओगी ?
तुम्हें तो
सिर्फ बहना है
बस बहते ही जाना है
अंत में समुद्र में मिल
अपने को
सदा के लिये
मिटाना ही तो है
मगर नारी तो धुरी है
उसी से तो
चलता है संसार
कितने - कितने रूप धर जीती
दुःख- दर्द अपमान
अनाचार अत्याचार
सहती
कभी आँसू बरसा कर
कभी पी- कर
बांटती है
प्यार, ममता, स्नेह
रखती है अपना
अस्तित्व कायम...
