भूख
भूख
भूख हर किसी को लगती है।
किसी की मिट जाती,
किसी की बढ़ती ही जाती ।।
किस्म - किस्म की भूख से ।
रोज वास्ता होता है,
भूख के आगे इंसान की नहीं चलती।।
खाने की भूख, पाने की भूख।।
दौलत की भूख, शौहरत की भूख।।
ताक़त की भूख, जीतने की भूख।।
प्यार की भूख, जिस्म की भूख।।
काम की भूख, नाम की भूख।।
सत्ता की भूख, सेवा की भूख।।
भूख कतई बुरी नही है।
गर सीमा की पहचान हो।।
बेलगाम भूख अक्सर ही।
फसाद करवाती है।।
जानवर अपना पेट भरकर।
चैन से सुस्ताने लगता है।।
बस इंसान ही है प्राणी।
जिसका पेट नहीं भरता है।।
आज का खाने से ज्यादा।
कल के खाने की फिक्र करता है।।
संचय की आदत के चलते।
कितनो का भोजन जमा करता है।।
खुद के पेट से ज्यादा जमा करके।
कितनो का पेट खाली रखता है।।
यहां इसके खाने की तश्तरी का।
आधा से ज्यादा कचरे में जाता है।।
और दूसरी तरफ कोई लाचार।
एक निवाला नही जुटा पाता है।।
ये ज्यादा खा-खा कर के।
बीमारियों से मर जाते है।।
और वहाँ कोई जान।
भूख से तड़प के गंवाता है ।।
जरूरत है हमें आज।
भूख की सीमा पहचानने की।
उतना ही डालें थाली में।
ना जरूरत पड़े नाली में बहाने की।।
ज्यादा दिया ईश्वर ने हमें तो।
चलो किसी का पेट भरते हैं।।
इस सामाजिक असमानता को।
दूर करने की कोशिश करते हैं।।