भूख
भूख
जो आँखें खोलकर जाग रहे थे,
वो भी किसी नींद में सो रहे थे,
रात भर बरसात थी शहर में
अनजान लोग
इमारतों को पर्दों से ढक रहे थे।
सुनसान थीं गलियां सभी
जानवर भी इधर उधर
छिपकर रात गुजार रहे थे।।
दूर एक गली में
एक घर का दरवाजा खुला हुआ था
कोई बाज उड़ता हुआ
वहाँ रुका था।
मानो मीलों उड़कर
उस रात को गुजारने के लिए
वहाँ रुका था।।
उसे थका हुआ देख
उस घर के सज्जन ने
उसे रात गुजारने की इजाजत दी।
घर छोटा था
मगर दिल बड़े लिए
उसे नई जिंदगी दी।।
किसी के पायलों की खन खन
जब उसके कानों में पड़ी
रोंगटे खड़े करते हुए
भूख बढ़ती गई।
शिकार फितरत है उसकी
वो आश्रय देने वाला जानता था
मगर कष्ट में जीव को देख
उसकी चिंता बढ़ गई।।
रात घनी थी
बरसात भी तेज थी
चीख थी मगर दम तोड़ रही थी।
कौन सुनता रुदन
भूख एक जीव की एक जीव के लिए बढ़ रही थी।