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Bhunesh Chaurasia

Abstract

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Bhunesh Chaurasia

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भूख का बाजार

भूख का बाजार

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भूख का बाजार

इन दिनों बहुत गर्म था

लेकिन कलमुंही सर्दी ने दस्तक दे दी थी

लोग रजाइयों में दुबके रहते थे


ऐसा नहीं था कि घर में

दुकानों में खाने पीने की

चीजों की कमी थी

लोग बस चिल्ला रहे थे हम भूखे हैं

रोजी है मगर रोजगार नहीं है


पतीलों में पानी कौन गरम करे

दाल-चावल कौन उबाले पकाए

आटा कौन गूदें रोटियों के लिए

चकले और बेलन पर

अपना हाथ कौन चलाए


चूल्हों पर तवे रख दो

या चाहो तो वह भी न रखो

हाथ ही सेंक लो चूल्हा जल तो रहा है

लेकिन पेट के अंदर भूख के लिए

दुबके हुए रजाइयों से कौन निकले

दिमाग गर्म है


लेकिन इन दिनों बाहर बहुत ठंड है

पेट के लिए ही सही लेकिन घर से बाहर

कौन निकले

बच्चे और बूढ़े नहीं निकलते

सारा बोझ वयस्कों पर है


लेकिन इन दिनों बहुत से वयस्क

रोजगार ढूंढ रहे हैं

बेरोज़गारी में पेट नहीं भरता साहब

बाजार भले ही गर्म रहे

भूखों मरना पड़ता है।


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