तारों की गिनती
तारों की गिनती
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चाॅंदनी रात में
स्वपन देखते हुए
कवि गिनता रहता है
तारा!
और सुबह में
खाट के नीचे सोया हुआ
मिलता है
गृहिणी की झाड़ू खाकर
उठ बैठता है
तब कवि अफसोस
व्यक्त करता है
एक बार पुनः
तारे गिनने से चूक गया!
तारे गिनने की प्रक्रिया
वर्षों से चली आ रही है
लेकिन अभी भी
सटीक गणना बाकी है
इन सब पचरों से
बेखबर
आसमान में तारे
अब भी टीमटिमा
रहें हैं
दिन में दिखते नहीं
और रात में कवियों को
दुःख पहुंचाने
निकल पड़ते हैं
खुले आसमान में।