प्रेम कविताएं
प्रेम कविताएं
लाज उसको फिर न आई
चुपके से कर गई बेवफाई,
हाथ मलते रह गए यूं हम
फिर कभी वो नजर न आई।
अक्सर सिर ऊंचा रहता था
लाज शर्म से यूं मर गया मैं,
निकलना दुभर हुआ मेरा
घर चुपके वो काटने आई।
बिना बुलाए घर जो आए
पालतू कुत्ते पूंछ हिलाए
ऐसा मेरा हाल हो गया जी
प्रेम कभी लब पे न आई।