बहुत कुछ बाकी है
बहुत कुछ बाकी है
धड़कन की सरगम बजती है मेरे सीने में,
ज़िंद की रवानी तन में अभी बाकी है।
तराशा हुआ पत्थर नहीं ज़िंदा है ख़्वाहिशें,
इंसा हूँ एहसासों का स्वाद अभी बाकी है।
सब्र का पैमाना मेरा छलक ना जाए कहीं,
नशेमन में बहकना थोड़ा अभी बाकी है।
सीधा सा दिल हो गया दर्द से यूँ दागदार,
खुद्दारी बंदे के भीतर थोड़ी अभी बाकी है।
राहों में कांटे है फिर भी चलना जरूरी है,
साँसों का सफ़र सीने में अभी बाकी है।
अपनों के बीच भी क्यूँ दुनिया बेगानी लगे,
मन की संदूक में आस भी अभी बाकी है।
ठिकाना मिलता है घर की गुंजाइश नहीं,
मुकाम ए मंज़िल ढूँढनी अभी बाकी है।
ज़िंदगी की शाम तले उम्र का सूरज ढ़ले,
तमस घिरी रात की भोर अभी बाकी है।