बहुत बुरी है वो
बहुत बुरी है वो
ना जाने कितने रिश्तों से जुड़ी है वो,
और हर रिश्ते से ना जाने कितने ताने लिए है, वो।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
हर दिन उसका एक जंग सा होता,
हर दिन उसका एक जंग सा होता।
चारों तरफ से हर रिश्ता उस पे हमला करता रहता।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
सुबह होते ही लग जाती घर के काम में वो,
ना रहता सुध बुध खुद का,
लगा देती सारी जान भी वो।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
आज भी खुद करती काम सारे, चाहे,
चूल्हा चौका हो या कपड़े लत्ते हमारे।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
घर में जो बात बात पे, मुझको डांटे है केवल वो।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
आज भी गर खाने पीने में होता देर,
कर देती उथल पुथल घर वो।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
बाते उसकी ज़हर सी लगती,
पल वो मुझको अझेल सा लगता।
पर मेरा कुछ गलत होते ना देख सकती वो।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
देख नुकसान मेरा वो असहज हो जाती,
कर देती वो सबकी ऐसी तैसी।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
कोई जो गलत इंसान मेरी ओर है आता,
किसी शेर के जैसी वो सतर्क हो जाती।
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।
जब तक माँ है मेरी साथ मेरे,
कभी अनर्थ ना हो सकता मेरे साथ।
सुन ले ये दुनिया सारी,
हाँ, माँ है मेरी, बहुत बुरी है वो।