बर्बाद
बर्बाद
एक बात जिसमे कोई न बन सका मेरा सानी,
इतनी बार किया कि कभी न बन पाई वो याद पुरानी।
चाहे हो कोई बात दिमाग की या फिर मन की,
किया व्यर्थ ही बर्बाद सभी को किसी की बात न मानी।
बर्बाद किया न जाने कितने पलों को जिनमे आज भी जान है बसती,
बर्बाद किया इतनी बार अब न कोई जान बचती है।
आदत बना ली बर्बाद होने की,
इस वक़्त में न कभी जिया होके मस्त, बस बर्बाद किया ये वक़्त।
जब भी मिला मौका कुछ कहने को बर्बाद किया वो भी
और चुना मैंने चुप रहने को।
बर्बाद हुए सपने कितने बर्बाद हुई उम्मीदे इतनी,
अब और न बचे सपने और न रही उम्मीदे, न जाने बर्बाद किये कितने।
बर्बाद किया स्नेह दिखावटी प्यार करने वालो पे
और बर्बाद किया गुस्सा अपने चाहने वालो पे।
एक बात जिसमे कोई न बन सका मेरा सानी,
इतनी बार किया कि कभी न बन पाई वो याद पुरानी।