हैरान परेशान
हैरान परेशान
ख़ामख़ा परेशान रहता है इंसान बस छोटी सी बात को लिए फिरता हैरान।
आजकल कोई भी उसको लगता नही ठीक सब लोगो में ढूंढे वो बस खोट।
कितना ज़ोर ले रहा है वो अपने दिल दिमाग पे की अब तो सांसे भी आती मशीन जैसी।
हर तरफ बस मारा मारी कोई नही जो दो पल कर लेता उससे बात।
घर पे भी वो बन गया है किरायेदार, जो रह रहा है सालो से अपनो मे अंजानो जैसा।
बातें अब खत्म हो गयी उसकी अब तो दिन भर सन्नाटे से बात करता घूमता है वो।
चैन तो जैसे सपना हुआ हो अब तो दो पल आँख लग जाती है तो किसी चमत्कार से कम नही।
बेचेनी अब साथ देने लगी उसका हर घड़ी, अब कोई पल नही जब वो उलझा सा न रहता हो।
कभी जो हर पल बस यूँही हँस लिया करते थे आज उन्हें रोने को दो पल नसीब नही।
चेहरे पे कभी कोई शिकन न थी जिनके आज कोई हिस्सा नही जहाँ कोई बेचेनी नही।
भाग रहा है वो बस भागे जा रहा है किस खुशी को पागल स पाने को और हर घड़ी बस हैरान परेशान।