भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार
रह- रह कर ये मेरे मन में ,उठता रहा सवाल ।
भ्रष्ट आचरण बन बीमारी ,जग में करे बवाल ।।
रिश्वत खोरी कहीं ,कहीं पर ,महँगाई की मार ।
नैतिकता भी आज बिकी है ,देखो बीच बजार ।
धनिक अधिक अब धनी हो गए ,निर्धन अति कंगाल ।।
भ्रष्ट आचरण बन बीमारी ,जग में करे बवाल ।।
शिक्षा ट्यूशन लेकर मिलती ,व्यर्थ हुए स्कूल ।
शिक्षा को पैसों में तोलें ,करते क्यों ये भूल ।
निर्धन शिक्षा से वंचित है ,दिल मे यही मलाल ।।
भ्रष्ट आचरण बन बीमारी ,जग में करे बवाल ।।
बड़े-बड़े गड्ढ़े सड़कों पर ,भृष्ट हुए सब काम ।
नेता खाते पैसा सारा ,फिर
भी मिले इनाम ।
मुश्किल में आवाम हुई है ,जीना हुआ मुहाल ।।
भ्रष्ट आचरण बन बीमारी ,जग में करे बवाल ।।
नेताओं के घोटालों का ,खूब हो रहा शोर ।
बड़े शान से लूट रहे हैं ,नही किसी का ज़ोर ।
ऊँचे पद आसीन सभी हैं ,ये भी बड़ा कमाल ।।
भ्रष्ट आचरण बन बीमारी ,जग में करे बवाल ।।
काले धन से भरी तिजोरी ,लेकिन भरे न पेट ।
सस्ती चीजें महँगी बेचें ,लगा चौगुना रेट ।
धरती माँ का सौदा करके ,बनते मालामाल ।।
भ्रष्ट आचरण बन बीमारी ,जग में करे बवाल
लगे सभ्य सरकारी बाबू ,हैं अवाम के साथ ।
लेकिन टेबल के नीचे से ,माँगे भर भर हाथ ।
रिश्वत खोरी इन बाबू की ,जी का है जंजाल ।।
भ्रष्ट आचरण बन बीमारी ,जग में करे बवाल ।।