'भरना चाहती हूँ लम्बी उड़ान'
'भरना चाहती हूँ लम्बी उड़ान'
जीना चाहती हूँ मैं
आज स्वयं के लिए,
महसूस करना चाहती हूँ
हर उस अहसास को
जो मिला नहीं कभी
तुम्हारे सानिध्य में,
करना चाहती हूँ अब,
अपने मन का
बिखरना चाहती हूँ,
अब...
इन खुली फिज़ाओं में
भरना चाहती हूँ
लंबी उड़ान
अनंत आकाश में,
अब...,
बनना चाहती हूँ
यायावर,
जाना चाहती हूँ
उस अनंत किंतु
अनभिज्ञ यात्रा पर
अब...,
तुम्हारे साथ को छोड़कर
तुमसे भिन्न
अपने मन का करना
चाहती हूँ मैं,
विचरना चाहती हूँ
उन बेज़ुबाँ परिंदों संग
खो जाना चाहती हूँ
प्रफुल्ल कलरव में उनके
कल- कल करती
नदियों के साथ
बह जाना चाहती हूँ
अब...
करना चाहती हूँ
अपने मन का
जीना चाहती हूँ
आज, स्वयं के लिए...!