फिर ना कहना तुम लड़े नहीं
फिर ना कहना तुम लड़े नहीं
अपने लिए ही दो कदम भी आगे
बढ़े नहीं
जब अपनी आकांक्षाएं कर रही थी परास्त तुम्हें ,
मूल्य भी कर रहे थे परिहास तुम्हारा
तो अस्तित्व को अपने
तुम किंचित भी डटे नहीं
खिन्न रहे पर खुशी को अपनी हिले नहीं।
फिर ना कहना तुम लड़े नहीं
परेशानी को तुमने सहा नहीं
सुगम रास्ते तुम चले वही
यहीं से मंजिल वो अगम बनी,
जिसकी डगर पर तुम चले ही नहीं
मिथ्या बोझ को तुम ढोते रहे
अर्थ को उसके समझे नहीं और
अर्थ के आगे अनर्थ को तुम सहते रहे।
फिर ना कहना तुम लड़े नहीं....
फिर ना जो निराश हो तो
चलो झकझोर को अन्तस
चिन्तन -मनन कर मानवता को बढ़ो सही।