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Dr Pragya Kaushik

Others

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Dr Pragya Kaushik

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,'गर आज ये किताबें न होती

,'गर आज ये किताबें न होती

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वो 'चाय पर चर्चा' और 'आय पर खर्चा '

बुजुर्गों की महफिल का वो किस्सा न होते

'परियों की कहानी' और 'चांद की सैर' की कोई तस्वीर जेहन में न उतरती ,'गर आज ये किताबें न होतीं ।


ये 'फेस बुक' भी शायद 'फेस लुक' ही होता और 'बुक ' का सिद्धान्त खुद की ही खोज में मशरूफ होता ,सोशल मीडिया एक पहेली बन ,जिन्दगी को और उलझाये रखता 'गर ,रैफ्रन्स को आज ये किताबें न होती।


'मन की बात' जन की आस' न होतीं 

श्रेष्ठ का श्रेय लेने को उम्मीद से रोशन ये आंखें न होतीं ,ये रेडियों ,टीवी को न बनाया -जाना जाता,'आकशवाणी' के अचम्भे से दुनिया भी स्तब्ध सी सूचीबद्ध होती,'गर आज ये किताबें न होतीं ।


न इतिहास खंगा

ला जाता न वर्तमान 

तौला जाता,न भविष्य को संजोने की

कोशिशें आजमायी जाती,पर हर कदम 

अटकलें ही हमें अटकाऐ रखती,'गर आज ये किताबें न होतीं ।


गीता, कुरान, ग्रन्थ, बाइबल भी न हम पढ पाते ,न ही राम , रहीम ,गुरू ,ईशु 

हम सुन -सुना पाते 

तपस्वियों की आराधना और साधना की साक्षी न बनती ,'गर 'आज ये किताबें न होती।


मूक बन दुनिया फिर से अपने आप में ही सिमटी होती ,भूत ,वर्त मान और 

भविष्य की 'बातें ' ही हमारी कवायदें होतीं,

कल ,आज और कल के पन्नों का विश्लेषण

वक्त की स्याही से वक्त की 'रेत ' पर लिखा होता,'गर आज ये किताबें न होती।

 



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