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Dr Pragya Kaushik

Abstract

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Dr Pragya Kaushik

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वक्त ने कहा वक्त से अभी-अभी

वक्त ने कहा वक्त से अभी-अभी

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वक्त ने कहा वक्त से अभी-अभी

वक्त ठहरता नहीं कभी

दर्ज हो जाता है याद बन

किताबों में तो कभी बातों में भी।


वक्त तो वक्त के पास भी नहीं,

उसको बीतना होता है

कभी हवा बन कर तो कभी

पानी सा बह कर मनमौजी।


हवाओं सा हल्का,पानी- सा निश्चल

चलायमान रहता है वक्त।

पहाड़ों- सा दृढ़

वृद्धों सा विचाराधीन,

संकल्प बद्ध भी तो होता है वक्त।


कभी गुरु तो कभी,गोविंद बन तराशता

संवारता है बंदो को ये वक्त।

कभी बेरहम बन

सजा देता है गुनाहों की भी अव्यक्त।


माता -पिता सा बन

दुलारता भी तो है वक्त।

प्रायश्चित पर एक सीख बन तजुर्बा सा,

बन जाता है वक्त।

कभी बुक मार्क बन तो कभी सूखे गुलाब -सा,

किताबों में कहानीकार बन जाता है ये वक्त।

ये वक्त ही तो है जो ब्यान कर रहा है

दास्ताने वक्त वक्त की और

उम्मीदें हर शख्स की आभिव्यक्त,

पर वक्त ठहरता कभी नहीं ..


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