हिन्दी हूं मैं वतन की
हिन्दी हूं मैं वतन की
हिन्दी हूं मैं वतन की
कहानी मेरे मान की है
हम सब के अभिमान की है
राज भाषा बनूँ या बनूँ मैं राष्ट्र भाषा
बात मेरे यत्न सिंचित उन्मान
की है।
मैंने तो बांधा बंधु -बांधव को
एक माला के भिन्न मोती सा,
मुझसे जुड़े सभी भारतीय
एक मां की अनमोल संतति सा,
फिर क्यों दंश परायों सा
देते यहाँ कुछ इंसान मुझे हैं?
क्या प्रेम में मेरे कोई कमी है
या मिठास ही ये पराई सी लगे है?
परदेस में भी प्यार मिले मुझे
पर भारतीय सभी क्यों न मेरे साथ खड़े हैं?
हिन्दी हूं मैं वतन की
कहानी मेरे प्रतिमान की है
आह्वान करूं में एकजुट होने का
अभिलाषा मेरे अभिमान की है
और कमान
मेरे गौरव के संचार की है।
हिन्दी हूं मैं वतन की
कहानी मेरे आयुष्मान
की है।