मन में असंख्य जिज्ञासाएँ थीं, आपने सुनना ही नहीं चाहा मन में असंख्य जिज्ञासाएँ थीं, आपने सुनना ही नहीं चाहा
अगली सहर से पहले नया अंतरिक्ष चुन ले सीमा हो जहाँ तक किरणे सूरज की उछले अगली सहर से पहले नया अंतरिक्ष चुन ले सीमा हो जहाँ तक किरणे सूरज की उछले
फिर भी अभिव्यक्त कहाँ हो पाता है ये मौन ! फिर भी अभिव्यक्त कहाँ हो पाता है ये मौन !