भारत:एक जीवंत यात्रा!
भारत:एक जीवंत यात्रा!
भारत हूँ मैं,
सिर्फ राष्ट्र नहीं,
विरासत हूँ मैं।।
बहता हूँ मैं,
इन हवाओं में।
रहता हूँ मैं,
इन घटाओ में।।
चलो, ले चलूं मैं ,
तुम्हें अपनी यादों में,
वादों में,
और मेरे जज्बातों में।।
अहो भाग्य।
अब मैं सुनाऊं अपना सौभाग्य।।
ईश्वर के अवतार भी देखे हैं मैंने, पापियों के संहार भी देखे हैं मैंने।
सभ्यता का उत्थान भी देखा मैंने, मानवता का कल्याण भी देखा मैंने।।
काल बदले, कथा बदली।
है समय की, यही नियति।।
देखा स्वजनों को कष्ट में ।
अरे! अब पता चला, मैं परतंत्रता के वश में।।
किंतु मुझे तो स्वराज से था प्यार,
अतः मेरी मुक्ति के लिए ,
स्वजनों ने लिया संकल्प ठान।।
त्याग , तेज, तप, बल में,
इनका नहीं है कोई सानी।
अदम्य साहस और वीरता,
है मेरे इतिहास की झांकी।।
फिर काल बदला,
तो कथा बदली।
वापस मिली,
मुझे स्वाधीनता अपनी।।
लाल किले की प्राचीर से,
जग ने मुझे पुनः पहचाना।
वहीं से फैलाया मैंने जग में,
वसुधैव कुटुंबकम् का नारा।।
हैं लिया मैंने संकल्प, आत्मनिर्भरता का।
जिससे गर्वित हो हर भारतीय, अपनी संप्रभुता का।।