भ्रमर
भ्रमर
कली खिलने से पहले ही, भ्रमर गुंजार करते हैं ।
उनींदी सी ही पलकों का, सभी गुणगान करते हैं ।
लगें जब खिलखिलाने भोर, की किरणों के आने पर,
अली दल मस्त होकर के, मधुर रसपान करते हैं ॥ 1 ॥
कुमुदनी ताकती राहें, भ्रमर के पास आने का ।
भ्रमर बैठे लगाए आस, उनके मुस्कुराने का।
बड़ा उपकार दोनों पर, सुनहली धूप का देखो,
जो आकर काम करती है, उन्हें खुलकर मिलाने का॥ 2 ॥
कुमुदनी प्रेम की मूरत, मधुर मुस्कान भरती है ।
हुई मुकुलित जरा सी तो, वो चंचल चित्त हरती है ।
भ्रमर मदमस्त हो मकरन्द, का रसपान करते पर,
कुमुदनी सौम्यता से हर, दिलों पर राज करती है ॥ 3 ।।
