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Poonam Kaparwan

Drama

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Poonam Kaparwan

Drama

भँवरा

भँवरा

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वन देवी पंख फैलाऐ

हाथ लिऐ जादू की छडी,

हरियाली फैलाऐ कर रही है !

ऋतुओ का आगमन

फूलों और कमल को

दे रही नवसर सृजन,

सूरज की तपन !


कर रही है कलियन का सृजन,

भँवरे कर रहे खुलने को,

कलियन के अधरन !"

चूस चूस कर रस का,

भर लेगे अपनी तपन,

कितना मधुर मिलन होगा,

कलियों का और भँवरो का,

और मधुमक्खियों का !


बनाऐगी मधु का सृजन,

मैंने भँवरो से पूछा_

किसके लिऐ है मधु सृजन,

बोले हम कितना खाऐगें

मानव मात्र को देकर हम,

बन जाते एक धडकन !

हे धरा कितना त्याग, समर्पित रूप

है आपका !


निर्लोभी मानव न समझें ,

कर्तव्य और आपका सर्जन,

शुभकामनाएं बंसत आगमन।


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