गुलाबी बहारें
गुलाबी बहारें
याद है न आज गुलाब दिन है ,
सुबह सुबह कहना चाहती थी आपको ।
बस चुप रही, सोचा नही बोलूंगी
और सो गई ,
वो चुपचाप उठे पलंग से
हम सपनों में खोए रहे
देखा जनाब चाय और प्लेट में गुलाब की कली लाए
मन नाच उठा झूम उठा,
हाथ में गुलाब देकर बोले
"आप आज भी बहुत हसीन हो" और कुछ कलियां बिखेर दी हम पर
सपना टूट गया हमारा ।
बोले श्रीमतीजी उठिऐ चाय की चुस्कियाँ लिजिए।
अनमने और अलसायी अखियाँ खोली
सपना सच था या झूठ,
प्लेट में चाय और गुलाब
देकर बोले
बेहद खूबसूरत हैं आप
यही मेरा बंसत और प्यार मेरा सुहाग।