बसंती बहार
बसंती बहार
आओ प्रियतम हाथ थाम लो मेरा
करो विचरण बंसती रुत में
आई है लेकर पुलकित मन श्रृंगार।
गुनगुनी घूप
शीतल पवन मंद मंद
ठहर जाऐ एक पल के लिए
करे मधुर मिलन।
अद्भुत श्रृंगार रस बरसे
नील गगन से
कर ले एक मिलाप।
बंसत कहता नर और नारी से
मिलकर झूमो और नाचो
पहन बंसती वस्त्र
रंगों में रंग जाओ
उड़कर धानी चुनरिया
मद मस्त बन जाओ।