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शालिनी मोहन

Tragedy

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शालिनी मोहन

Tragedy

भाषा आत्महत्या नहीं करती

भाषा आत्महत्या नहीं करती

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दुनिया की भाषाएँ हमें पुकार रही हैं

भाषा भी मनुष्य की तरह होती है

वह भी चाहती है मनुष्य के साथ रहना, चलना, जीना

एक भाषा तब तक जीवित रहती है।


जब तक हम उसे अपने क़रीब, अपने पास रखते हैं

किसी भी भाषा को बोला, पढ़ा और लिखा जाना 

निश्चित करता है उसकी उम्र इस पृथ्वी पर

एक भाषा कभी आत्महत्या नहीं कर सकती।


उसको मारने, दफ़नाने वाले होते हैं हम

सिर्फ़ हम, हाँ, हम

दुनिया की भाषाएँ भी 

मनुष्यता की तरह लुप्त हो रही हैं

इस तरह दुनियाँ की सारी भाषाएँ 

एक दिन मारी जाएँगी, ख़त्म हो जाएगी पूरी तरह।


यह याद रखना है हमें हमेशा कि

भाषाओं की मृत्यु के साथ-साथ

हमारी मृत्यु भी निश्चित है

कभी सोचा है

असंवाद की ऐसी नई दुनिया में

कौन समझेगा हमारा दुख, हमारी ख़ुशी।


क्या कोई पढ़ पायेगा हमारा मन, हमारी आँखें

मौन और आँखों को पढ़ने में

यह दुनिया अभी सक्षम नहीं

सबसे अंत में यह होगा कि इस दुनिया में

पत्थर की काया भी सूनी रह जायेगी


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